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दुर्गा चालीसा पीडीऍफ़ फाइल | नवदुर्गा के नाम एवं प्रभाव | durga chalisa pdf

माता जी के नौ रूप हैं जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं , जिनके नाम इस प्रकार हैं। 

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maata-shailputri

माता शैलपुत्री

maata-bharamcharini

माता ब्रह्मचारिणी

maata-chanderghanta

माता चंद्रघंटा

Maata-Kushmanda

माता कूष्माण्डा

skandmaata

माता स्कंदमाता

maata-katyayni

माता कात्यायनी

Maata-Kaalratri

माता कालरात्रि

Maata-Mahagauri

माता महागौरी

maata-Sidhidatri

माता सिद्धिदात्री

माता जी के नौ रूपों को खुश करने के लिए दुर्गाचालीसा का पाठ करना बड़ा ही लाभकारी होता है।

अगर आपके पास दुर्गाचालीसा की किताब नहीं है तो आप durga chalisa pdf को डाउनलोड करके भी पढ सकते हैं और माता दुर्गा की पूजा अर्चना कर सकते हैं।  

माता शैलपुत्री -> पर्वत राज हिमालय के रूप में माता पारवती मानी जाती है।

माता ब्रह्मचारिणी -> ब्रह्मा  जी द्वारा उत्त्पन सृष्टि का सञ्चालन करने वाली माता है।

माता चंद्रघंटा -> इनका प्रभाव चन्द्रमा की भाँती शीतल एवं सौम्य है। विरोध को शांत करने वाली एवं हर संकट से बचने वाली माता चंद्रघंटा का स्थान कर्नाटक के कांचीपुरम में है।

माता कूष्माण्डा -> पुराचीन ऋषि मुनियों और व् पौराणिक ग्रंथो का विश्लेषण कूष्माण्डा के तथ्यों पर आधारित हैं।  इनकी पूजा अर्चना करने से त्रिविद ताप का निवारण करने में समर्थ होती है।  भीमा पर्वत पर इनका स्थान बताया गया है।

माता स्कंदमाता -> इनकी कृपा से मुर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। 

माता कात्यायनी ->  कात्यान ऋषि के आश्रम में रहकर साधना व् प्रयोग करने के कारण इन्हे कात्यायनी माता कहा जाता है। इनका गुण शौध कार्य है।  यह वैधनाथ स्थान पर प्रकट होकर विख्यात हुई।

माता कालरात्रि -> अंधकारमय स्थितियों का विनास करने वाली माता का नाम कालरात्रि है।  भय का नास करने वाली और काल से रक्षा करने वाली काल रात्रि का सिद्धपीठ कलकत्ता में है। 

माता महागौरी -> गौरी के तीन रूप है , पहला महागौरी , शैलपुत्री माता बनकर महागौरी बनी।  महागौरी का प्रशिद्ध शक्तिपीठ हरिद्वार के समीप कनखल नमक स्थान पर है। 

माता सिद्धिदात्री -> यह माता सर्व सिद्धियों को प्राप्त करने में समर्थ है।  इसलिए सिद्धिदात्री नाम से जानी गई हैं। सेवक पर इनकी कृपा होने से कठिन कार्य भी चुटकी बजाते ही हो जाते हैं।  हिमाचल के नंदा पर्वत पर इनका प्रशिद्ध तीर्थ स्थान है।

दुर्गा चालीसा पढ़कर आप अपने बिगड़े काम बना सकते हैं।  नवरात्रो में दुर्गा चालीसा पड़ने पर माता विशेष कृपा करती हैं।  durga chalisa pdf डाउनलोड करके भी माता का पाठ कर सकते हैं

दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

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